सुप्रिया और ड्राइवर का रिश्ता
सुप्रिया और सोनी का आज
आखिरी पेपर था. दोपहर घर पहुंचीं तो उन की खुशी देखते ही बनती थी. 2 महीनों से
पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई में व्यस्त थीं. 12वीं कक्षा की पढ़ाई छात्रों के लिए बेहद
अहम होती है. इसी कक्षा के नंबरों पर आगे की पढ़ाई निर्भर करती है. अगर नंबर थोडे़
भी कम हुए तो किसी भी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिल सकता. इसीलिए 2 महीनों से सुप्रिया
और सोनी ने पढ़ाई के लिए दिनरात एक कर दिए थे. आज एक बड़ा बोझ उन के सिर से उतर
गया था. आज दोनों का पिक्चर देखने जाने का प्रोग्राम था. सुप्रिया और सोनी ऐडल्ट
मूवी देखने गईं, जिस की उन की सहेलियों में
बहुत चर्चा थी. वे दोनों भी खुद को वयस्क मानने लगी थीं. शरीर में होते हारमोनल
बदलाव को वे महसूस करने लगी थीं.
मूवी हौल में जा
कर देखा तो आधे से अधिक दर्शक 12वीं कक्षा के छात्र थे. मूवी शुरू होते ही हौल में सन्नाटा छा गया. सब का ध्यान स्क्रीन पर था. हीरो और
हीरोइन का रोमांस करना, एकदूसरे को चूमना जवान दिलों की
धड़कनों को बढ़ाने के लिए काफी था. पहली बार सब ऐसे दृश्य देख रहे थे. सब की
धड़कनें बेकाबू होती जा रही थीं. सभी अलग ही दुनिया में विचरण कर रहे थे. मूवी
खत्म हुई तो बाहर आने वाले सब छात्रों के चेहरे देखने लायक थे. कुछ के चेहरे
रोमांच से लाल थे तो कुछ मुंह नीचा किए जा रहे थे मानों उन से कोई अपराध हो गया
हो. सुप्रिया और सोनी भी कुछ इसी भाव से भरी हुई थीं. आज रात में दोनों एकसाथ ही
रहने वाली थीं. दोनों सीधे घर आईं और मूवी के डायलौग दोहराने लगीं. दोनों का हंस हंस
कर बुरा हाल था.
रात को खाने की मेज पर सुप्रिया
के मम्मी पापा भी खाना खाने के लिए साथ बैठे. दोनों ही डाक्टर थे और एक ही हॉस्पिटल में काम करते थे. सुप्रिया की मां स्त्रीरोग विशेषज्ञा
थीं.
वे बोलीं, ‘‘आज दोनों के चेहरों पर खुशी नजर आ रही है. अब डेढ़ महीना
मजे में बिताओ. जब रिजल्ट आएगा तो फिर चिंता शुरू होगी कि दाखिला कहां मिले.’’
‘‘आज तुम दोनों
कौन सी मूवी देख कर आईं?’’ सुप्रिया के पिता राकेश ने पूछा.
दोनों ने एकदूसरे की ओर
देखा और फिर तुरंत किसी दूसरी मूवी का नाम ले दिया. उन का झूठ वे नहीं पकड़ पाए. सुप्रिया
के मम्मीपापा दोनों ही अपनेअपने काम में इतना व्यस्त रहते थे कि अपनी बेटी की
हरकतों की ओर उन का ध्यान नहीं जाता था. इसलिए सुप्रिया और सोनी की छिपी मुसकराहट
को वे नहीं देख पाए. रात को सोनी की मां का फोन आया. सोनी की मां शहर के एक बहुत
बड़े बुटीक की मालकिन थीं और बहुत व्यस्त रहती थीं. सोनी को अच्छी से अच्छी चीजें
देना ही उन का काम था. सोनी भी अपनी कक्षा की वैल ड्रैस्ड गर्ल के रूप में जानी
जाती थी. सोनी के साथ बैठ कर उन्होंने कभी बात नहीं की.
रात को जब सुप्रिया और सोनी
सोने लगीं तो उन की बातों का केंद्र वही मूवी थी. सुप्रिया गुनगुना उठी, ‘‘बस एक सनम चाहिए आशिकी के लिए…’’
सुन कर सोनी ने चुटकी ली, ‘‘तो फिर एक हसीन सनम ढूंढ़ा जाए.’’
‘‘हां जरूर पर
सपनों में ही. अगर सच में ढूंढ़ लिया तो मम्मीडैडी घर से निकाल देंगे.’’
‘‘उन्हें कौन
बताएगा. उन्हें तो अपने काम से ही फुरसत नहीं मिलती है. हम थोड़ीबहुत शैतानी कर ही
सकते हैं.’’
‘‘अगर शैतानी
भारी पड़ गई तो?’’
‘‘पहले से ही गलत
सोचना शुरू कर दिया तो फिर हम कुछ नहीं कर पाएंगे.’’
‘‘अगर तुझे डर
नहीं लगता है तो तू ही शुरू कर ले. मैं दूर बैठी ही मजा लूंगी.’’
‘‘ऐसा नहीं होगा,
डूबेंगे तो एकसाथ समझी?’’
‘‘हां, समझ गई मेरी सखी,’’ फिर आगे बोली, ‘‘अरे, सखी सुनते ही मुझे ध्यान आ रहा है कि पेपर
शुरू होने से पहले एक डाक्टर स्कूल में आई थीं. उन्होंने सखी नाम की ओरल
कौंट्रासैप्टिव पिल के बार में बताया था. तब तो पढ़ाई का भूत सवार था, इसलिए उस ओर ध्यान नहीं दिया. अब वह पैंफ्लेट ला कर पढ़ते हैं. मैं ने
अपनी हिंदी की किताब में रखा था,’’ कह कर सुप्रिया झट से उसे
निकाल लाई.
‘‘ज्यादा उड़ने
की कोशिश मत कर. वे सब तो शादी के बाद की बातें हैं… अभी वैसा सोचा तो बहुत मार पड़ेगी.’’
‘‘तू तो बस डरती
ही रहती है. जिंदगी का मजा क्या बुढ़ापे में उठाएगी?’’ कह वह
सखी का विज्ञापन पढ़ने लगी. उस में लिखा था- जब तक चाहें बच्चा न पाएं और 2 बच्चों
में अंतर रखने का सरल उपाय.
‘‘हमें तो बस एक
सनम चाहिए आशिकी के लिए… इस आशिकी में सखी ही काम आएगी समझी मेरी सखी?’’ वह गुनगुनाते हुए बोली.
‘‘बस कर… बस कर…
तेरी मम्मी को पता चल गया तो गजब हो जाएगा… तू ने आरुषि वाली खबर तो पेपर में जरूर
पढ़ी होगी कि मांबाप ने ही आशिकमिजाज बेटी की हत्या कर दी.’’
‘‘अपना उपदेश
अपने पास रख. मुझे तो एक अदद सनम चाहिए.’’
दोनों बातें करतीकरती नींद
के आगोश में चली गईं. दूसरे दिन जब सुबह उठीं तो भी उन के दिमाग में वही मूवी घूम
रही थी. दोनों की आपस में छेड़छाड़ जारी थी.
सुप्रिया बोली, ‘‘तुझे कैसा सनम चाहिए?’’
‘‘पहले तू बता?’’
‘‘अक्षय कुमार
जैसा.’’
‘‘मुझे तो संजीव
कुमार जैसा चाहिए.’’
‘‘तुझे सनम चाहिए
या पापा?’’
‘‘सनम ऐसा हो जिस
के साथ मैं सुरक्षित महसूस करूं. एक से दूसरे फूल पर उड़ने वाला नहीं चाहिए.’’
‘‘तू तो बहुत
दूरदर्शिता की बातें करती है?’’
‘‘मैं तो हमेशा
से ही होशियार हूं… तू ने मुझे समझ क्या रखा है? और सुन तुझे
भी कोई गलत काम नहीं करने दूंगी.’’
‘‘अच्छा मेरी सखी,’’ और फिर दोनों खिलखिला कर हंस पड़ीं.
दोनों ही हंसी की आवाज सुन
कर सुप्रिया के पिता डा. राकेश अंदर आए और बोले, ‘‘1 दिन और छुट्टी मना लो. कल सुबह से तुम्हारी ड्राइविंग क्लास शुरू हो
जाएगी. मैं ने एक ड्राइवर को फिक्स कर दिया है. वह रोज सुबह 7 बजे आ कर तम्हें
ड्राइविंग सिखाने ले जाया करेगा.’’
‘‘सच डैडी,
आप मुझे कार चलाने देंगे? आप कितने अच्छे हैं…
थैंक्यू डैडी.’’
‘‘और तुम्हारी
मां ने दोपहर में तुम्हारा नाम कुकिंग क्लास के लिए भी लिखवा दिया है. दोपहर में 1
घंटा तुम वहां जाओगी. शाम को 1 घंटा जिम में कसरत करोगी.’’
‘‘वाह, आप ने तो पूरे दिन का प्रोग्राम बना दिया. अब बोर होने के लिए समय ही नहीं
होगा.’’
सोनी दोपहर को अपने घर चली
गई. दूसरे दिन जब ड्राइवर आया और सुप्रिया ड्राइविंग सीखने निकली तो उस की खुशी का
ठिकाना नहीं था. 1 हफ्ता बीततेबीतते वह कार चलाना सीख गई. अब उस का ध्यान ड्राइवर
की ओर गया. वह बहुत ही स्मार्ट लड़का था. देखने में अक्षय कुमार से कम नहीं था.
अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए वह पार्टटाइम में ड्राइविंग सिखाता था. अब अचानक ही उस
का हाथ उस के हाथ को छूने लगा और तिरछी नजरों से एकदूसरे को देखना शुरू हो गया. सुप्रिया
अब उठतेबैठते उस ड्राइवर अमित के बारे में ही सोचती. उस ने सोनी को भी फोन पर
बताया कि एक अदद आशिक मिल गया है. अब बस आशिकी करने की देर है.
सोनी बोली, ‘‘पागल मत बन. एक ड्राइवर को आशिक बनाएगी?’’
‘‘क्यों नहीं?
एक ड्राइवर आशिक क्यों नहीं बन सकता? मैं पूरे
जीवन की बात नहीं कर रही हूं. मैं तो पार्टटाइम आशिक की बात कर रही हूं.’’
‘‘तू पागल हो गई
है. हद में रह तेरी मम्मी को पता चला तो मार डालेगी तुझे… एक और आरुषि मर्डर केस
बन जाएगा.’’
‘‘मैं इतनी भोली
नहीं हूं. मेरे कारनामे की खबर मम्मी को पता नहीं लगेगी.’’
दूसरे दिन जब तक सोनी उस
के घर पहुंची तब तक सुप्रिया मनमानी कर चुकी थी. उस ने अपनी मम्मी के पर्स से ही
सखी पिल निकाल कर खा ली थी. पिल खाने के बाद उस के हौसले बुलंद थे. आशिक के सामने
जब सुप्रिया ने स्वयं समर्पण कर दिया तो फिर उसे क्यों एतराज होने लगा था और फिर
कार की पिछली सीट पर ही सब घटित हो गया. सोनी जब सुप्रिया के पास पहुंची तो उसे
देखते ही वह सब कुछ समझ गई.
अब उस ने सुप्रिया को
डांटना शुरू किया. बोली, ‘‘यह तू ने
क्या किया? अगर पिल ने काम नहीं किया और कुछ गड़बड़ हो गई तो?
हमें वह ऐडल्ट मूवी देखनी ही नहीं चाहिए थी.’’
‘‘अच्छा अपना
भाषण बंद कर. अब तू भी जल्दी से एक आशिक ढूंढ़ ले.’’
‘‘अपनी सलाह अपने
पास रख. अब दोबारा तू ऐसा कुछ भी नहीं करेगी जिसे छिपाना पड़े.’’
‘‘अच्छा, ऐसी बात है तो मैं तुझे कुछ भी नहीं बताऊंगी. सतिसावित्री तू ही बन. मुझे
तो जिंदगी के मजे लेने हैं.’’
सोनी ने चुप रहने में ही
भलाई समझी. चूंकि सुप्रिया के सिर पर आशिकी का भूत सवार था, इसलिए किसी भी सलाह का असर उस पर होने वाला नहीं था. सुप्रिया
ने मजे लेले कर सोनी को सब कुछ बताया. वह सोच रही थी कि उस ने दुनिया की सब से
बड़ी नियामत पा ली है. पर उस की इन बातों ने सोनी पर कोई असर नहीं किया. वह अपनी
हद में रहना जानती थी. सुप्रिया की ड्राइविंग तो पूरी हो गई थी, पर उस का अमित ड्राइवर से मिलनाजुलना चलता रहा. धीरेधीरे नए अनुभव पुराने
होने लगे. अब वह अमित से पीछा छुड़ाना चाहती थी. रिजल्ट निकलने का समय भी नजदीक आ
रहा था. उधर उस ने महसूस किया कि शरीर में कुछ गड़बड़ हो रही है. इस महीने उसे
नियत समय पर पीरियड भी नहीं आया. उस ने 1 हफ्ता और इंतजार किया. फिर तो उस की जान
सूखनी शुरू हो गई.
उस ने सोनी को घर बुलाया
और अपनी परेशानी बताई.
सोनी उस पर टूट पड़ी. बोली, ‘‘अब भुगत अपनी करनी का फल. बेवकूफ लड़की अब ले आशिकी का मजा.
सखी ने भी धोखा दे दिया न? अब क्या करेगी? आंटी को पता चला तो उन्हें कितना दुख होगा.’’
‘‘लैक्चरबाजी बंद
कर और मुझे बता अब मैं क्या करूं?’’
‘‘आई पिल रोज
नहीं खाई थी क्या?’’
‘‘छोड़ इन सब
बातों को अब मुझे तू इस मुसीबत से निकाल.’’
‘‘अपनी मम्मी को
सब कुछ सचसच बता दे. वे डाक्टर हैं. उन्हें ही पता होगा कि अब क्या करना है.’’
‘‘मम्मी को बता
दे, वाह क्या अच्छी सलाह दे रही है. क्या और कोई डाक्टर नहीं
है?’’
‘‘डाक्टर तो बहुत
हैं पर कुछ गड़बड़ हो गई तो आंटी को पता तो चलेगा ही.’’
‘‘क्या गड़बड़
होगी? सुना है कि 10-15 मिनट में सब खत्म हो जाता है और किसी
को भी पता नहीं लगता है. ’’
‘‘सुना है कई बार
केस बिगड़ जाता है. तब लेने के देने पड़ जाते हैं. देख एक गलती तो कर चुकी है अब
दूसरी बड़ी गलती मत कर. अपनी मम्मी को सब बता दे और वे ही तुझे इस बड़ी मुसीबत से
निकाल सकती हैं.’’
‘‘मेरी इतनी
हिम्मत नहीं है… मैं मम्मी को कुछ भी नहीं बता सकती हूं.’’
‘‘तो फिर लिख कर
सब बता दे. तुझे डांट तो जरूर पड़ेगी पर तू सुरक्षित हाथों में रहेगी.’’
सुप्रिया अब कुछ भी करने
को तैयार थी. उस ने सारी घटना कागज पर लिखी और मां के पर्स में डाल दी. मां ने जब
पढ़ा तो उन के पांवों तले से जैसे जमीन खिसक गई. उन की बेटी ने इतनी बड़ी गलती
कैसे कर ली? उन का दिमाग ही जैसे थम सा
गया. पति को बताएं या छिपाएं… वे जल्दी घर आ गईं और फिर खुद को कमरे में बंद कर
लिया. 1-2 घंटे बीत जाने पर वे शांत हुईं और फिर सुप्रिया को बुलाया.
‘‘मौम मैं ने आप
के पर्स में से ही सखी पिल्स निकाल कर खाई थीं.’’
‘‘उन पर
ऐक्सपायरी डेट पढ़ी थी क्या?’’
‘‘नहीं.’’
‘‘अब चुप रहो और
अपनी नादानी की सजा भुगतो. मैं ने कितनी ही बेवकूफ लड़कियों के अबौर्शन किए हैं पर
नहीं जानती थी कि एक दिन मेरी ही बेटी इस तरह मेरे सामने आएगी. तुम्हारे अधकचरे
ज्ञान ने तुम्हें मार दिया. मुझे कभी इतनी फुरसत ही नहीं मिली कि तुम्हें सब कुछ
समझाऊं. मेरे घर में मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई है, इस का
मुझे भान तक नहीं हुआ. मैं तो अपने ही काम में व्यस्त रही. हम दोनों से ही चूक हो
गई. अब दोनों को ही सजा मिलेगी. मैं भी सारी उम्र अपने को माफ नहीं कर पाऊंगी. चलो,
आज शाम को ही काम कर दिया जाए. आज तेरे डैडी भी घर में नहीं हैं. उन
को भी खबर नहीं होनी चाहिए. तेरे पल भर के मजे ने तुझे डुबो दिया.’’
‘‘मां, मुझे माफ कर दो.’’
फिर उसी शाम घर में बने
क्लीनिक में एक मां ने अपनी बेटी की गलती का निशान साफ कर दिया. शारीरिक बोझ तो
चला गया था, पर इस घटना के मानसिक घाव
कभी जाने वाले नहीं थे. बिना उचित जानकारी के अच्छी औषधि भी जहर बन सकती है. वे तो
विवाहित महिलाओं को ही समझाती थीं कि जब तक न चाहो संतान न पाओ या बच्चों की आयु
में अंतर कैसे रखें. स्कूलकालेज की छात्राएं इस का दुरुपयोग करेंगी, ऐसा तो उन्होंने कभी सोचा ही नहीं था. बंदर के हाथ में उस्तरे जैसा काम उन
की बेटी के जीवन में इन पिल्स ने किया था. उन की बेटी जैसी उन्मुक्त और न जाने
कितनी लड़कियों ने इन पिल्स का दुरुपयोग किया होगा. जीवन में ज्ञान के साथसाथ
विवेक की भी जरूरत होती है. विवेक को केवल मातापिता ही सिखा सकते हैं. वे तो अच्छी
मां साबित नहीं हुईं. उन्होंने काम की अधिकता के कारण कभी बेटी के पास बैठ कर उसे
उचितअनुचित का ज्ञान नहीं दिया. आज बेटी की गलती में वे भी अपनेआप को बराबर का
भागीदार मान रही थीं, इसीलिए वे सुप्रिया को डांट भी नहीं
पाईं. बस मनमसोस कर रह गईं.