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सुनीता और नौकरी



आज सुनीता सुबह देर से जागी और इस कारण से उसके सारा काम लेट होता चला गया। वह सुबह उठने के बाद  जल्दी जल्दी सब काम निबटाने लगी। वह देर से इसलिए उठी क्योंकि रात भर वह इसी उधेड़बुन में लगी रही की आगे ना जाने क्या होगा?

सुबह जब वह लेट उठी तो बच्चो के स्कूल भी नहीं भेज पायी थी और इसी कारण से बच्चे भी सुनीता पर गुस्सा होकर चिल्लाने लगे थे की आज सिर्फ वो सुनीता की वजह से स्कूल नहीं जा पाए थे।

बस अब क्या कर सकते थे सुनीता अपने पति के लिए लंच तैयार करने में जुट गयी और पति के ऑफिस जाने के बाद घर का और काम निबटने में लग गयी।

पहले सास और ससुर की चाय बनायीं फिर बच्चो के लिए नाश्ता तैयार करके उन्हें खिलाया और बाद में नाहा कर खुद खाने के लिए बैठी ही थ की दरवाज़े की घंटी बाज़ी और उसने देखा की एक गरीब आदमी दरवाज़े पर भोजन मांग रहा है इसके बाद सुनीता अंदर जाकर अपना भोजन ले आयी और उस गरीब आदमी को दे दिया और वह गरीब आदमी ख़ुशी ख़ुशी आशीर्वाद देकर चला गया।

इसके बाद सुनीता अंदर आपने कमरे में बैठकर अपने पुराने दिनों को याद करने लगी जब वह अपना कॉलेज की पढाई ख़त्म करने के बाद नौकरी करने लगी थी और उसे वह बात भी याद आयी जब उसकी नौकरी लगने के बाद उसने ये खबर अपने माता पिता को बताई तो वह कितने खुश हुए थे और उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं था।

आखिरकार उनकी मेहनत रंग लायी थी क्योंकि उन्होंने सुनीता को बढ़िया परवरिश जो दी थी।

सुनीता तीनों भाई बहनों में सबसे बड़ी थी और इसी की वजह से उसके ऊपर घर की भी ज़िम्मेदारी थी पर इसके साथ वह माँ बाप की लाडली भी थी।

सुनीता के पिताजी के सरकारी नौकरी थी जिसमें वह एक क्लर्क थे पर इसके बाद भी उन्होंने अपने तीनो बच्चो को अच्छी शिक्षा दी थी।

नौकरी करते करते दो साल बीत गए थे और सुनता के पिताजी को उसके शादी के चिंता होने लगी थी और उन्होंने एक अच्छे लड़के की तलाश शुरू कर दी।

फिर एक दिन राजीव के यहाँ से एक रिश्ता आया, वह सरकारी बैंक में मेनेजर के पद पर नियुक्त था।
राजेव  देखने में भी सुन्दर था और बस सुनीता के घर वालों ने जल्दी से शादी पक्की कर दी और सुनीता ने भी राजीव को पहली ही नज़र में अपने जीवनसाथी के रूप में पसंद कर लिया था।

सुनीता भी किसी से देखने में कम नहीं थी, गोरा रंग, छरहरा बदन, तीखे हैं नक्श और अच्छा खास कद उसके ऊपर सुन्दर और सुशिल भी थी, राजीव के घर वालों भी और क्या चाहिए था? उन्होंने भी सुनीता को देखते ही हाँ कर दी।

बस राजीव के घर वालों को एक बात से ही ऐतराज़ था की सुनीता शादी के बाद नौकरी न करे और सुनीता के घर वाले भी इस बात पर राज़ी हो गए।

बस फिर क्या था जल्दी से शादी का महूरत निकल गया और शादी हो गयी और सुनीता अपने ससुराल चली गयी।

शुरू में तो सब अच्छा लगा और राजीव भी सुनीता की हर जरूरत को पूरा करता था, उसे घूमने ले जाता था और सुनीता भी नए घर वालों को पाकर खुश थी।

सुबह राजीव के ऑफिस जाने के बाद सास और ससुर की खूब सेवा करती थी और शाम को राजीव का इंतज़ार करती।

शाम को वह तैयार हो जाती और राजीव भी सुनीता जैसी पत्नी पाकर बहुत खुश था।
 
देखते ही देखते सुनीता ने दो बच्चों को जन्म दिया।
जिनका नाम उन्होंने सारांश और सुप्रिया रखा।

दोनों बड़े ही प्यारे बच्चे थे और उनकी रौनक से पूरा परिवार खुशयों से भर गया।

कुछ समय बाद दोनों बच्चे स्कूल जाने लायक हो गए और उनका एडमिशन स्कूल में करवा दिया गया।

जब बच्चे स्कूल चले जाते तो सुनीता घर में खाली बैठकर बोर होने लगी थी और उसे लगने लगा की उसके पास करने के लिया अब ज़्यादा कुछ नहीं है क्योंकि बच्चे स्कूल से आने के बाद अपने कामों में लग जाते थे और सास ससुर तीर्थ यात्राओं पर निकल जाते और सुनीता घर पर अकेली रह जाती।

अब वह अपनी नौकरी ना करने के निर्णय पर फिर सोचने पर मजबूर हो गयी..........


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