अमित की घर वापसी
अमित घर का एकलौता बेटा था इसलिए खूब लाड प्यार से पला था| उसके
पापा सरकारी नौकरी करते थे| घर में किसी प्रकार की कमी नहीं
थी| पापा माँ के लिए बहुत तौफे ला कर देते, साथ में अमित के लिए भी बढ़िया खिलोने लाया करते थे| जब
कभी पापा किसी ऑफिस के काम से बाहर जाते तो मै और माँ दोनों मामा के यहाँ चले जाते
थे|
मां के पीहर में मामा, मामी और उनके दो बच्चे रहते थे, नाना और नानी का स्वर्गवास हो गया था| पहले जब वो
रहते थे तो बड़ा मजा आता था| वैसे मामा का स्वाभाव भी बहुत
अच्छा था पर मामी को हमारा आना पसंद नहीं आता था|मामा तो बाहर
से बढ़िया बढ़िया खाने की चीज लाते,पर मम्मी देख कर मुँह बना
लेती थी शायद वो माँ से चिढ़ाती थी| वो ही क्या बाकि
रिश्तेदार भी हमारी कामयाबी से जलते थे|
माँ और पापा तो बहुत सरल स्वाभाव के लोग थे, वो
कभी किसी को भला बुरा नहीं कहते थे| पापा के दफ्तर में भी
लोग उनकी ईमानदारी से जलते थे इसीलिए वो खूंदस निकालते रहते थे, पर पापा पर इस बात का कोई असर नहीं होता था|
एक दिन अचानक दरवाजे की घंटी बजी मैंने जा कर देखा तो चार-
पांच लम्बे कद के एंकल खड़े थे| मैंने जोर से पापा को आवाज़ लगाई पापा,
पापा| ये सुन कर पापा कमरे से बाहर आये और
उनसे आने का कारण पूछा, तो वो किसी पैसे की लेन देन की बात
कर रहे थे| इससे पहले मैंने पापा को इतना परेशान कभी नहीं
देखा था| पापा के कहने पर माँ मुझे ले कर अंदर चली गयी|
आज मेरे स्कूल की छुट्टी करा दी गयी थी पर मुझे इस बात का पता नहीं
था की जो माँ रोज़ जबरदस्ती स्कूल जाने को कहती थी वो बिना किसी वजह के छुट्टी
कराने को राज़ी हो गयी|
अंकल जोर जोर से पापा से जूए में हारे हुए पैसे मांग रहे थे, यह
सुन कर मेरे सामने पापा की जो ईमानदार होने की जो छवि थी वो धूमिल हो गयी थी|
मुझे लगा मेरे सब दोस्त अब मेरा मजाक बनाएंगे जो पहले मेरे महंगे
पर्फुम्स, ब्रांडेड कपड़ो के कारण सिर- आँखों पर बैठाए रहते
थे, आज वो मुझ पर हसेंगे| हमारे सब
रिश्तेदारों के सामने हमारी क्या इज्जत रह जाएगी?
ऐसा सोचते हुए मैं घर से खेलने के बहाने बाहर निकाल आया| अब घर
जाने का तो मन नहीं था तो मै उसी बस में बैठ गया जो सामने खड़ी थी| मुझे ये तक मालूम नहीं था की जाना कहाँ है, पर इतना
पक्का था की घर नहीं जाना था| बस में बैठे हुए लोग मुझे ऐसे
घूर रहे थे जैसे मैंने कोई अपराध कर दिया हो| सबकी घूरती
आँखें अमित के दिल मै डर पैदा कर रही जैसे उसने कोई अपराध कर दिया हो| यही सोचते सोचते उसको नींद आ गयी जब आंख खुली तब बस के सभी यात्री उतर रहे
थे| मै भी उतर गया और सोचने लगा अब कहाँ जाऊ? मन में बहुत सवाल थे इसी उदेहड़बून ही वो उसी कसबे के एक छोटे से होटल में
जा कर खड़ा हो गया उसे भूख भी लगी पर उसके पास पैसे न थे| मायूस
सी आँखों से वो वह खड़ा था इतने मे ही अब्दुल मिया की नजर उस पर पड़ी, वो समझ गया ये हालत का मारा हुआ भले घर का लड़का है| उसने
अमित को पास बैठाया और पूछा कुछ खाने को चाहिए अमित ने सिर हिला दिया| अब्दुल मियां
ने खाने का सामान दे कर कहा, तुम कहा से आये हो? इसपर अमित ने कुछ नहीं कहा|
अमित को माँ पापा की याद आ रही थी इस कारण उसकी आँखों से
आंसू बहने लगा| अब्दुल मिया को उसपर दया आ गयी, सो उसने
उसको वही रुकने के लिए कहा और वो रात को होटल बंद कर वही लेट गया| होटल में पहले दो दिन तो उसने बर्तन धोये पर ठंडा पानी होने के कारण सर्दी
से कुकुडने लगा, ये देख कर अब्दुल मियां ने उसे हिसाब किताब
देखने को कहा|
पांच- छे दिन गुजर चुके थे एक दिन मौका पाकर कर अब्दुल मिया
ने पूछा तुम कहा के रहने वाले हो तो अमित ने अपनी आपबीती उसको सुनाई| अब्दुल
मिया ने अमित को घर जाने के लिए कहा की अभी तुम बहुत छोटे हो और साथ में एक न्यूज़
पेपर भी दिया जिसमे ये लिखा हुआ था की प्यारे बेटे टीम घर वापस आ जाओ तुम्हारी माँ
तुम्हे याद करके बहुत रोती है, तुम्हारे पापा भी पहले जैसे
बन कर दिखाएंगे|
ये पढ़ कर अमित की आँखों मे से भी आँसू भेने लगे और वो घर
जाने के लिए तैयार हो गया| और अब्दुल मियां ने फ़ोन कर कर अमित के माँ
पापा को बुला लिया|
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